भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमलावर / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:36, 19 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिन हमलावरों ने उसकी हत्या की थी
वे उसकी अन्तिम यात्रा में शामिल थे
हत्यारों को जानती थी पुलिस
वे राजनेताओं के क़रीब थे
नगर के लोग उनसे परिचित थे
उनके दुस्साहस के सामने छोटा था
लोगों का साहस
जो हत्यारों के ख़िलाफ़ बोलता था
वह मारा जाता था
हत्यारे बन्दूक लहराते हुए आते थे
और हत्या करके आराम से चले
जाते थे
उन्हें इस काम में हड़बड़ी नहीं
पसन्द थी
वे बेख़ौफ़ और निडर थे
हत्या के बाद अपने मनपसन्द नारे
दोहराते थे
लोगों को धमकी देते हुए कहते थे
..अगर किसी ने जुबान खोली तो उसका
हश्र यही होगा।