अन्त की कविताएँ-1 / तेजी ग्रोवर
प्यार हो सकता है यह जो घाट की तिलकनी सीढ़ी पर बैठा है।
कोई अनचीन्हा जानवर है जिसकी याद उसे देखकर आती है।
एक स्वप्न हो सकता है यह मन्दिर में स्तम्भों की जगह नितम्ब
तने हैं। ईर्ष्या की राख बरस रही है।
अभी समय है, अभी समय है — एक बूढ़ी औरत रेतीली घास में
बोल रही है। झुर्रियाँ मिट जाएँगी, अभी समय है, मेरे बच्चे।
माथे फटने को हैं, आत्माएँ काँच के गुम्बद को तरेड़ती हुई बह रही
हैं। एक दमकती देह लहर में अपनी एड़ी को खुरदुरे पत्थर से माँज
रही है। एक तिनका-सा पुरुष गेंदे के फूलों के पास बैठा है। आँखें
नम हैं। तुम बताओ, वह कहता है, क्या मेरे पास कुछ भी नहीं है?
उसके बाईं ओर किसी के स्तनों के बीच एक सतरंगी पत्थर रह-रहकर
अपनी धूप बना रहा है।
सुबह के दस बजे नदी में तैयार चाय-सा पानी है। जापानी एक
नचैया बहुत धीमा नाच रहा है, बाँसुरी चिता की ओर उठाए।
कोई आने वाला है
इस कविता का भ्रम तोड़ने
कोई आने वाला है