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इस दौर में / परितोष कुमार 'पीयूष'
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खोखले होते जा रहे
सभी रिश्तों के बीच
भरी जा रही है
कृत्रिम संवेदनाएँ
वक्त के
इस कठिन दौर में
आसान नहीं है करना
पहचान अपनों की
अपने ही
रच रहें है
अपनों की हत्या
कि तमाम साजिशें
वक्त के
इस कठिन दौर में
मुश्किल है
दो कदम साथ चलना
दो रातें साथ गुजारना
दो बातें प्रेम की करना