प्रेम की आदिम गुफ़ाओं में / नीलोत्पल
हम कोई शुरूआत नहीं करते
हम सिर्फ़ प्रेम करना चाहते हैं
ऐसा करते हुए
हम सिर्फ़ दो हैं जो नहीं चाहते
कोई अन्त।
तुम्हारे ख़याल से
मैं एक पहाड़ हूँ और तुम एक चिड़िया
तुम ऊँचाई और नीचाई पर समान रुप से जाती हो
जबकि मैं मेंढ़क की नन्हीं उछाल भी नहीं ले पाता
लेकिन हमारा यह असामान्य गुण काटता नहीं एक-दूसरे को
हम सिर्फ़ कुछ चीज़ें चाहते हैं; मसलन
खिडकियाँ, पत्तियाँ, रोशनी, चन्द लम्हें एक-दूसरे को
भुलाने और याद करने के।
वह घिसा पत्थर जिस पर तुमने चटनी बनाई
उस पत्थर के भीतर
तुमने रख छोड़े अपने गीत
और न जाने कितने न मालूम अहसास
जब तुम निकल जाती हो आईने के पार
मैं सुनता हूँ उस पत्थर को
मैं सुनता हूँ उस पत्थर को
कैसे तुमने उसे नदी बना दिया है
जो तैर रहा है अब मेरे भीतर।
प्यार के रास्ते होते है बेहतर
हम एक शुरूआत करते हैं शब्दों से
जो किसी ईश्वर के भीतर नहीं रहते
हम देते हैं उसे पनाह
उसे रचते हैं
हम आज्ञाएँ नहीं ढोते
हमने स्वतन्त्र कर रखा है उन्हें
जो नहीं चाहते प्यार
क्या वे प्रेम की उन आदिम गुफ़ाओं में
जा पाएँगे
जहाँ हमने जनम दिया
अपने भीतर बसे हुए मासूम शब्दों को।