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माँस के हिस्सेदार / गोविन्द माथुर

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भेड़ि़ए और गिद्ध

एक सँयुक्त मोर्चा बनाते हैं

पर जंगल में

शासन शेर का ही रहता है


शेर चाहे कितना ही

बूढ़ा है पर

उसकी गर्जना से

अब भी जंगल

काँप उठता है

वह जानता हैं

भेड़ि़ए और गिद्ध

उसके खिलाफ नहीं हैं


कुछ और जंगलवासी

एक होने की कोशिश में

हमेशा लड़ते रहते हैं

कुछ महत्वाकांक्षी खरगोश भी हैं

जो नही जान पाते

शिकार हमेशा

उनका ही क्यों होता है


जब कभी ऐसा

महसूस होने लगता है कि

अब शेर का शासन

समाप्त होने वाला है


भेड़ि़ए या गिद्ध कोई भी

शेर से हाथ मिला लेते हैं

भागीदार हो जाते हैं

नर्म माँस के लोथड़ो में


शेर का शासन

और मज़बूत हो जाता है

जंगल में एक बार फिर

शान्ति छा जाती है


एक और नया

सँयुक्त मोर्चा बनता है

माँस में हिस्सेदारी के लिए