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मैं असभ्य हूँ / गोविन्द माथुर

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मैं असभ्य हूँ क्योंकि

औपचारिक गोष्ठियों में बैठ कर

साहित्य, संस्कृति और कला पर

बात नही करता

मेरे चेहरे से आभिजात्य

नही टपकता

मै कहीं से भी बुद्धिजीवी

नही लगता


मैं असभ्य हूँ क्योंकि

हिन्दी माध्यम में पढ़ा हुआ हूँ

औपचारिक होने का नाटक नहीं करता

सुसंस्कृत लोगो में बैठ कर

बात-बात में अंग्रेज़ी शब्दों का

उच्चारण नहीं करता


मैं असभ्य हूँ क्योंकि

व्यवहार कुशल नहीं हूँ

व्यक्तियों का उपयोग

करना नही जानता

सम्बन्धों को भुनाना

मुझे नहीं आता


मै असभ्य हूँ क्योंकि

झूठ नही बोलता

गाली नही देता, किसी को

हिकारत से नही देखता

चापलूसी नही करता

प्रभावित करने के गुण

मुझ में नही हैं

न ही मैं उपयोगी प्राणी बन सकता हूँ


मैं असभ्य हूँ क्योंकि

मैं भावुक हूँ संवेदनशील हूँ

ठहाका लगा कर हँसता हूँ

कभी-कभी लोगों के

बीच रो भी देता हूँ


मैं सभ्य लोगों की

तरह चालक नहीं हूँ

क्योंकि मैं असभ्य हूँ