भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चे जानते हैं / गोविन्द माथुर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:07, 26 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द माथुर }} बच्चे जानते हैं घर का अर्थ बच्चे जान...)
बच्चे जानते हैं
घर का अर्थ
बच्चे जानते हैं
हाथी के दाँत दिखाने के और
खाने के और होते हैं
हम बहुत कुछ
भूलते जा रहे हैं
बच्चे दिखाते हैं हमें
चिड़ि़याघर का रास्ता
बच्चे ले जाते हैं हमें
हमारे बचपन में
बच्चे जोडते हैं हमें
घर से, परिवार से
दुनिया से प्रकृति से
बच्चे ले जाते हैं हमें
अपने साथ स्वप्नलोक में
बच्चे जानते हैं
प्रेम का अर्थ
बच्चे सिखाते हैं
हमें प्रेम करना