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चार चुटकुले कह कर / सुरेन्द्र सुकुमार

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चार चुटकुले कह कर खुद को कवि कहलाता है।
और बगल की लड़की को कवियित्री बतलाता है।।

भीख तालियों की माँगे है, नहीं भिकारी है,
छोटे मोटे संयोजन वो ख़ुद करवाता है।

लेन-देन की सही परम्परा निभा रहा है वो,
उनको ही वो बुलवाता जो उसको बुलवाता है।

मोदी की वो नकल करे है, आडवाणी की खिल्ली
मिमकिरी लालू की करके नकल उड़ाता है।

आज निराला जीवित होते तो वो मर जाते
ख़ुद अपने को ही जब वो वाणी-पुत्र बताता है।

यश भारती मिल जाए या पद्मश्री उसको
रात-दिन पद छूकर पैरोकार बनाता है।

धरती-पुत्र मुलायम को कहता, माया को रानी
शिवपाल को राजनीत का सन्त बताता है।

इन्हें बुला कर जूते मारो, पारश्रमिक के बदले
बिना लिखे कविता जो ख़ुद ही कवि बन जाता है।

साले, बड़े बेशरम इनको, लाज नहीं आती
दूजे की कविता को जो अपनी बतलाता है।