भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / सूरदास

Kavita Kosh से
Deepak (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:39, 31 जुलाई 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखक: सूरदास

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


प्रीति करि काहु सुख न लह्यो।

प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥

अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो।

सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥

हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत न कछु कह्यो।

'सूरदास' प्रभु बिनु दुख दूनो, नैननि नीर बह्यो॥