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ख़ामोश-सी फ़िज़ा का ये मंज़र उदास है / कविता सिंह

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ख़ामोश-सी फ़िज़ा का ये मंज़र उदास है
जो मस्त था वह आज कलंदर उदास है

क्या ख़ौफ़ है कलम में वह हरकत नहीं रही
क्या बात है कि आज सुखनवर उदास है

घायल ये साँस-साँस है ज़ख्मों भरा है दिल
तुझसे बिछड़ के क़ल्ब ये दिलबर उदास है

ख़ानोशियाँ-सी छा गईं मौजे हयात पर
बेसब्र ख़्वाहिशों का समंदर उदास है

क़ातिल तो हँस रहा है 'वफ़ा' जोश में मगर
मेरे लहू को देख के खंजर उदास है