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बह्रे ग़म और ज़िन्दगानी है / कविता सिंह
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बह्रे ग़म और ज़िन्दगानी है
मुख़्तसर-सी मिरी कहानी है
रोज़ बातें उसी से करती हूँ
एक ख़त जो तिरी निशानी है
फूल हसरत के हैं चढ़े जिस पर
कब्र दिल में वह इक पुरानी है
कौन से रिश्ते की दुहाई दूँ
आज कल ख़ून भी तो पानी है
जिस्मो-जाँ का सफ़र तो है तन्हा
ज़िन्दगी की यही कहानी है
रक्स करती है मेरी तन्हाई
ग़म है चेहरे पर शादमानी है
सुन ज़रा गौर से ग़ज़ल ऐ 'वफ़ा'
हाल सब दर्द की जुबानी है