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लकीरों को पढ़ते / सैयद शहरोज़ क़मर

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लकीरों को पढ़ते
उन्होंने कहा —
अर्थाभाव रहेगा
अमुक पत्थर पहनो

धन की चाह नहीं
सो इनकार कर दिया

कान से चुहचुहाते पसीने में
जवान बेटी की हथेलियों की
हिना घुल रही थी

09.03.97