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न तो दोज़ख़ की ये / सैयद शहरोज़ क़मर
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(हज यात्रा : मीना अग्निकाण्ड पर)
न तो दोज़ख़ की ये आँधी होगी
न शैतानों ने ज़मी बाँधी होगी
तन-प्रदर्शन से कुछ नहीं होता
मन न बदले तो ये बाँदी होगी
तुम ही मोना हो और सोना हो
तुम न होगे तो क्या चाँदी होगी
छत के कटोरों सेहल नहीं होता
भुखमरी की तो फिर आँधी होगी
16.04.97