भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आइये / पंकज सुबीर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 30 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सुबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आइये मैं आपके तलवे चाट लूँ
आप महान जो हैं
आपकी महानता इससे
शायद कुछ और बढ़े
या शायद न भी बढ़े
किन्तु
मेरी तो नियति है
कि मैं चाटूँ
आपके तलवे
कोई और चारा भी तो नहीं है
इसीलिए
आत्मा नाम की अनदेखी
और कल्पित वस्तु को
फैंकता हूँ कूड़ेदान में
और लो मैं चाटता हूँ
आपके तलवे
क्योंकि मैं नहीं चाहता
फेंका जाना
स्वयं को
किसी कूड़दान में...