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इन्तज़ार / सुकुमार चौधुरी / मीता दास
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ख़ाली बूथों पर बैठा आदमी गप्पों में मशगूल हो जाएगा फिर
रैली नहीं जुलूस नहीं,
स्लोगन नहीं, झण्डा नहीं, प्रचार भी नहीं,
मनुष्य सिर्फ़ विगत वोटों के आधार पर
आलोचना करेंगे इस बार
कोई कहेगा — वहाँ मनुष्य नहीं
रुपयों से जीत गया आख़िरकार
कोई कहेगा — वहाँ डर से, कोई कहेगा क्षमता से,
अमुक पार्टी जीत गई उस जगह से
बीड़ी का कश लेता हुआ कोई कह ही उठेगा
और हम इन्तज़ार करेंगे
खड़े रहेंगे हम अनन्त काल तक
और एक मनुष्य उठ खड़ा होगा भीड़ से
कह उठेगा वहाँ से जीत गया है एक आदमी
जिसके पास धन नहीं, क्षमता नहीं, पार्टी भी नहीं
सिर्फ़ मुहब्बत को छोड़ उसके पास
और कोई भी हथियार नहीं था।
कभी भी नहीं ।
मूल बांग्ला से अनुवाद — मीता दास