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गरबा / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत

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कितना बढ़िया गरबा खेलते हैं ये लोग
स्टीरियो बन्द होने पर भी
नहीं टूटती इनके डाण्डियों की लय

इन्सान के सन्दर्भ में सारी परिकल्पनाओं
को बदल देता यह माहौल

कितने ताकतवर के हैं ये लोग
कल तक घर जलाने वाले
क़त्ल करने वाले ये हाथ
कितना बढ़िया डाण्डिया खेल रहें हैं

स्टिरियो के बन्द होने पर भी
नहीं चूकती इनके डाण्डियों की लय

उनकी पूजा का समय नहीं पता मुझे
शायद वे भी भूल गए होंगे प्रार्थना
महाआरती की भीड़ में सब घुलमिल जाता है
आवाज़ और सही-सही शब्द याद नहीं भी आए तब भी
तालियों के ताल में
घण्टियों की लय में बढ़ सकते हैं आगे

दरअसल किसलिए है यह आरती
और
प्रार्थना किसके लिए?

जब भूचाल आता है
जब ढहते हैं मकान
साथ में अपने आत्मीय दफ़न होते समय
नहीं काम आती कोई भी प्रार्थना

मन्दिर-मस्जिद भी ढह जाते है धड़ाधड़
ढूँढ़नीं पड़ती है मूर्तियाँ मलबे के नीचे से
और धर्मग्रन्थों की प्रतियां भी

कितना जल्दी उठता है इनसान
मलबे के नीचे से
सँवरता हैं और हो जाता है तैयार भी
मलबा हटाने से पहले

लगा लग कर धार तैयार रहती हैं उनकी तलवारें
कल तक आरती का थाल सजाने वाली ये औरतें
कितने अच्छी तरह से जलाती है होली
और ये मन्दिर निर्माण के लिए निकली औरतें
कितनी निडर दिख रहीं हैं,
हाथो में त्रिशूल थामे
‘मन्दिर वहीँ बनाएँगे’

लगे तो पहले अगल बगल में
अभ्यास हेतु इनसानों की मज़ार बना देंगे?

कितना बढ़िया गरबा खेलते हैं ये लोग
स्टीरियो बन्द होने पर भी
नहीं टूटती इनके डाण्डियों की लय

आदमी की साँस रुकने पर भी
नहीं टूटती
इनके कलेजे की लय

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत