कविता वाली प्रेयसी सुन्दर होती है
पर मैं तो उतनी सुन्दर नहीं
फिर कैसे लिखोगे
मुझ पर कविता?
उसके सवाल से वह
नहीं पड़ा असमंजस में
ना ही हुआ भावुक
परन्तु थोड़ा झन्ना गया भीतर से
सम्पूर्ण देह में बसा हुआ था
उसका ही अस्तित्व !
वह कौनसा मापदण्ड लगाए सौन्दर्य का
कि उसका अस्तित्व मिट जाए
तब
शायद साँसे भी थम जाएँगी
डर लगा उसे!
साँसों से जुड़ा हुआ है उसका अस्तित्व
कविता की ख़ातिर
दाँव पर लगाने की हिम्मत नहीं हो पाई उसकी
वह निशब्द होकर कविता सँजोता रहा
भीतर ही भीतर
उसके साथ
उसके विद्यमान रंग-रूप के साथ
जीवन से बेहतर सौन्दर्य
और कहीं होता है भला?
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत