भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गेंद-तड़ी / कन्हैयालाल मत्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 20 जनवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है कसरत दमदार बड़ी,
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !

भागो-भागो, हाथ न आओ,
जमकर लम्बी दौड़ लगाओ,
पल-भर रुके कि गेंद पड़ी
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !

अन्दर-बाहर आओ-जाओ,
लुका-छिपी का रंग जमाओ,
दाँव-पेच की लगे झड़ी,
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !

खुलकर करो निशानेबाज़ी,
खेल-खेल में क्या नाराज़ी,
जुड़े टूटती हुई कड़ी,
गेंद तड़ी, भई, गेंद तड़ी !