भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / आरती तिवारी

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:32, 30 जनवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता,झाँकती है
यादों के झरोखे से
शब्द बुहारते हैं
अन्तराल की धूल
अर्थ ठकठकाते हैं विस्मृति के किवाड़
और एक परी करती है अठखेलियाँ
मेरे मन के आँगन में
तुम चुपके से जाने कब
पढ़ लेते हो मेरी कविता
और मैं फिर से जी उठती हूँ