किस को कैसे पीर दिखाऊँ / सच्चिदानंद प्रेमी
किसको कैसे पीर दिखाऊँ?
अंतरमन में घाव बहुत हैं,
अनचाहत के भाव बहुत हैं ;
दूर-दृष्टि पर घना अँधेरा-
कैसे जग को मर्म बताऊँ?
आंधी-ओला डेरा डाले,
हुआ बसेरा तमस हवाले,
तारे सभी तिरोहित नभ में-
आगे कैसे पाँव बढ़ाऊँ?
अपने भी जब छोड़ चले हैं,
रिश्ते नाते तोड़ चले हैं,
करुणा-ममता मोड़ चले हैं-
किससे फिर अब प्रीत लगाऊँ?
अपनों का साहस है छूटा,
मन का भी विश्वास है टूटा,
जग की इस होड़ा-होड़ी में-
किसकी छवि फिर ह्रदय बसाऊँ?
यही इश्वर की कठिन परीक्षा,
पूर्ण न होती मानवी इच्छा,
हुई नहीं भव-भाव समीक्षा-
किसका फिर कैसे यश गाऊँ?
किसको कैसे पीर दिखाऊँ?