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कविता / कुमार मुकुल
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सांचक शिखर धरि जाय वला
दूरक रस्ता थिक कविता
सांचक सूरजक आंच सं जों
हम्मर हाथ आ हम्मर पायर
फूलय लागय अछि
तं सपनाक हाथ सं
हमरा सभक कें थाम्हि ले अछि कविता
कल्पना केर पांखि सं ले उड़े अछि
बयार अ झंझावातक मध्य सों
ज नेना जकां काने लागी हम
त मायक लोरी जकां
सुता दे अछि कविता
आ अप्पन अंचरा खींच कै
सूरज के सोझा कैए दै अछि।