भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबको बस इक पनाह चाहिये / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 1 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबको बस इक पनाह चाहिये
अपनेपन की ही चाह चाहिये

जुड़ ही जाते हैं रिश्ते अपने-आप
चाहतों की निगाह चाहिये

हैं दरिन्दों की ख्वाहिशें यही
शहर उनको तबाह चाहिये

काम बिगड़े हुए सँवर सकें
आपकी वो सलाह चाहिये

मिल ही जाएँगी मंज़िलें ज़रूर
पहले मिलनी तो राह चाहिये