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आलिंगन में प्रिय/ कविता भट्ट
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1
कभी पसारो
बाँहे नभ -सी तुम
मुझे भर लो
आलिंगन में प्रिय !
अवसाद हर लो।
2
उगता रवि
धरा का माथा चूमे
खग-संगीत
मिले ज्यों मनमीत
दिग्-दिगन्त झूमे।