भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लो फिर / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 15 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन सगोरिया |अनुवादक= |संग्रह=दि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लो फिर, जाग उठा सूरज
किरणें दे रहीं
द्वार पर दस्तक
लो फिर लौट आई
आँखों में ज्योति।