भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुश्किल समय में / मोहन सगोरिया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:57, 15 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन सगोरिया |अनुवादक= |संग्रह=दि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोचो गर ऐसा हो कि
करा ले कोई नींद का पेटेण्ट
तब नींद के बारे में फूछने पर
वह उसकी मर्ज़ी से ही बताएगा

और उतना ही देगा जितनी
क्षमता होगी उसके पास पहुँचने वाले की
यह भी सम्भव है कि
वह कुछ कहे-सुने बग़ैर टरका दे आपको

ऐसे मुश्किल समय में
हमें अपने खेतों की ओर लौटना होगा।