भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चींटी / सुधेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 15 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधेश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चींटी
सरकती-सरकती
चढ़ गई हिमालय

कुछ दिनों बाद
कोरी चमड़ी में खाज उठी
सोचा एवरेस्ट की सैर करूँ

एक बर्फ़ीला झौंका
थप्पड़-सा लगा

चींटी दबी-दबी सोच रही
चलो हिमालय की चोटी
तक तो पहुँची
 
किसी और दिन देखूँगी
एवरेस्ट।