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बाल कविताएँ / भाग 1 / सुनीता काम्बोज

इक छोटी चिड़िया

झूल रही है डाली-डाली

इक छोटी चिड़िया मतवाली

आम लगी वह खाने जैसे

पेड़ कहे-पहले दो पैसे

चिड़िया बोली-ऐसे कैसे

क्या करने हैं पैसे-वैसे

घर चिड़िया जब लगी बनाने

पेड़ कहे-पहले दो दाने

क्या करने हैं दाने-वाने

आई तुमको गीत सुनाने

पेड़ कहे सुन पंखों वाली

छोड़ न जाना मेरी डाली

-०-

अम्बर में उड़ जाने दो

मुझको पंख लगाने दो

अम्बर में उड़ जाने दो

मैं तोता बन जाऊँगा

आम रसीले खाऊँगा

मुझको पंख लगाने दो

अम्बर में उड़ जाने दो

मैं चिड़िया बन जाऊँगा

डाली-डाली गाऊँगा

मुझको पंख लगाने दो

अम्बर में उड़ जाने दो

मैं तितली बन जाऊँगा

फूलों पर मँडराऊँगा

मुझको पंख लगाने दो

अम्बर में उड़ जाने दो

मैं कौआ बन जाऊँगा

बैठ मुँडेरे जाऊँगा

मुझको पंख लगाने दो

अम्बर में उड़ जाने दो

-०-

मूँगफली ओ मूँगफली

मूँगफली ओ मूँगफली

कहाँ चली तू कहाँ चली

सर्दी में तू आती है

गर्मी में छुप जाती है

गर्म रेत में सिकती है

धरती में तू उगती है

सबके मन को भाती है

खोल पहन इतराती है

-०- आई सरकार

बन्दर की आई सरकार

शेर गया है अबकी हार

बैठा बन्दर

बड़ा कलन्दर

खुश होता है

अंदर-अंदर

नाचे गाए

खुशी मनाए

जो जीता अब

वही सिकन्दर

चूहा अब है थानेदार

बन्दर की आई सरकार

हौले-हौले

मनवा डोले

खड़ी गिलहरी

खिड़की खोले

शेर चला है

मुँह लटकाए

अब बेचारा

कैसे बोले

लगता है जैसे बीमार

बन्दर की आई सरकार

राज मिला है

काज मिला है

बन्दर को अब

ताज मिला है

कूद रहा है

डाली-डाली

खुशियों का पल

आज मिला है

उसके गुण गाए अखबार

बन्दर की आई सरकार

बजी बधाई

जनता आई

बन्दर जी की

हुई सगाई

बने बराती

घोडा-हाथी

कोयल गाती

ज्यों शहनाई

जंगल में जैसे त्योहार

बन्दर की आई सरकार -०-