आंग सान सूकी के लिये / अच्युतानंद मिश्र
म्यॉमार की सड़कों पर खून नहीं था
रोशनी भी नहीं थी वहां
हवा बंद थी सीखचों में
और चुप थी दुनिया
चुप थे लोग
कि म्यॉमार की सड़कों पर खून नहीं था
म्यॉमार के लोगों का खून बहुत गाढ़ा नहीं था
बहुत मोटी नहीं थी उनकी खाल
बहुत गहरी नहीं थी उनकी नींद
बहुत हल्के नहीं थे उनके सपने
बहुत रोशनी नहीं थी उनके घरों में
म्यॉमार की एक लड़की
जो हवा थी
बंद थी सींखचों में
बहुत चीख नहीं रही थी वो
बस सोच रही थी
सींखचों की बाबत
सड़कों की बाबत
लोगों की बाबत
म्यॉमार की बाबत
जब कि म्यॉमार की सड़कों पर खून नहीं था
जरूरत थी हवा की
और हवा कैद थी सींखचों में
लोग रहने लगे थे भूखे
करने लगे थे आत्महत्या
बगैर गिराए सड़कों पर एक बूंद खून
उलझन में थी हवा
उलझन में थे लोग
और चुप थी दुनिया और चुप थे लोग
उधर सींखचों में बंद हवा
टहल रही थी
तलाश रही थी आग
जिसे भड़काकर वह जलाना चाहती थी शोला
पिघलाना चाहती थी लोहे के सींखचों को
पर हवा कैद थी सींखचों में
लोग बंद थे घरों में
और म्यॉमार की सड़कों पर खून नहीं था
यूं कुछ भी कर सकते थे लोग
आ सकते थे घरों के बाहर
तोड़ सकते थे जेल की दीवारें
हवा को कर सकते थो आजाद
भड़का सकते थे आग पिघला सकते थे सींखचे
पर म्यॉमार की सड़कों पर खून नहीं था।