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तुम हमें प्यार दो / अर्पित 'अदब'

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दिल की पीड़ाओं को क्यूं न आधार दें
तुम हमें प्यार दो हम तुम्हें प्यार दें

मुझ से मेरा तुम अब छीन आकाश लो
मैं तुम्हारी धरा को यूँ अपना कहूँ
नींद ओढ़े क्यूँ पलकों पे आ हो खड़ी
सत्य समझूँ इसे या के सपना कहूँ

फ़िक्र साँसों को ये है के तुम को कहीं
जीतने की ख़ुशी में न हम हार दें
दिल की पीड़ाओं को क्यूं न आधार दें
तुम हमें प्यार दो हम तुम्हें प्यार दें

सिर्फ पन्नों में बिखरी ये नज़्में मेरी
रोक कितना भी लूँ चुप रहेंगी नहीं
धूप थामे मैं दिन काट लूँगा मगर
सर्द रातें सितम ये सहेंगी नहीं

या किताबों में रखें या अब कौन से
ढाल साँचें में हम इन को आकार दें
दिल की पीड़ाओं को क्यूँ न आधार दें
तुम हमें प्यार दो हम तुम्हें प्यार दें

रोने-गाने को तो सैकड़ों हैं मगर
गीत ऐसा हो जिस में मैं पा लूँ तुम्हें
रात मुझ से ये टूटी कलम ने कहा
आँख मूँदों 'अदब' तो खँगालूँ तुम्हें

हम अंधेरों की चादर हैं ओढ़े हुए
क्यूँ उजालों को रातों में पतवार दें
दिल की पीड़ाओं को क्यूँ न आधार दें
तुम हमें प्यार दो हम तुम्हें प्यार दें