भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शेष दिल ही जानता है / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:04, 23 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप सबके पूछने पर, कह दिया आनंद में हूँ,
शेष दिल ही जानता है।

क्या कहें कितनी विषम हैं,
नित्य-प्रति की परिस्थितियां।
युद्ध लड़ता हूँ स्वयं से,
जी रहा हूँ विसंगतियां।

आप सबसे मुस्कुराकर, कह दिया आनंद में हूँ,
शेष दिल ही जानता है।

मुश्किलों में देख सबने,
कर लिया मुझसे किनारा।
लाख रोका, रुक न पाया,
बँट गया आँगन हमारा।

मामला निपटा बताकर, कह दिया आनंद में हूँ।
शेष दिल ही जानता है।

हल नहीं जिन उलझनों का,
टाल देना ही भला है।
दर्द सहकर मुस्कुराना,
है कठिन, लेकिन कला है।

दर्द सब अपने भुलाकर, कह दिया आनंद में हूँ।
शेष दिल ही जानता है।