Last modified on 23 फ़रवरी 2018, at 10:04

बासंती ऋतु आई / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:04, 23 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मौसम ने अंगड़ाई ली है
बासंती ऋतु आई।
पीली चूनर ओढ़ खेत में
सरसों है लहराई।

फर फर करती उड़ी पतंगें
लो काटा वो काटा।
सर्दी वाले मौसम का अब
दूर हुआ सन्नाटा।

छत पर होती धमाचौकड़ी
बच्चों की बन आई।

बाग बगीचे फूल खिले हैं
खुशबू रंग लुटाते।
महक उठी है आम्रमंजरी
गुन गुन भँवरे गाते।

बच्चे कुहुक चिढ़ाते हैं जब
तब कोयल शरमाई।

फगुनाहट से गमक उठा है
यौवन का मधुप्याला।
अपने अपने चितचोरों को
खोजे हर मधुबाला।

कामदेव के बाणों से है
घायल हर तरुणाई।