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कह दिया है मुख़्तसर में / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

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कह दिया है मुख़्तसर में।
अब अकेला हूँ सफ़र में।

हादसे ही हादसे हैं,
आजकल की हर ख़बर में।

फेर लीं उसने निग़ाहें,
मिल गया जब भी डगर में।

छोड़िए, वह गिर चुका है,
खुद ब खुद अपनी नज़र में।

सुन खबर अपनी गली की,
जा छिपे हैं लोग घर में।

साथ साया भी न देता,
'ज्ञान' तपती दोपहर में।