बार-बार क्यों शकुनी फेके
राहुल! पहला दाँव
सौ करोड़ जब तीन दिनों में
सिनेप्लेक्स में फिल्म कमाती
निर्धनता अनबूझ पहेली
बात तनिक न समझ में आती
समझ न आती बात कि उजले
कौवे करते काँव
मंच काव्य का या नेता का
दोनो की ही एक कहानी
ताल ठोकते, व्यंग्य सुनाते
मरा हुआ आँखों का पानी
भोली-भाली जनता खोजे
कहो कहाँ अब ठाँव
बाँट रहा है भोजन कपड़ा
और कराता मतगनना भी
जनगनना का भार उसी पर
और उसे जीवन गढ़ना भी
ऐसे चाणक्यों से खोजे
मगध आजकल छाँव
रचनाकाल- 15 दिसंबर 2016