भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बना न चित्र हवाओं का / किशन सरोज
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 23 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किशन सरोज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बिखरे रँग, तूलिकाओं से
बना न चित्र हवाओं का
इन्द्रधनुष तक उड़कर पहुँचा
सोँधा इत्र हवाओं का
जितना पास रहा जो, उसको
उतना ही बिखराव मिला
चक्रवात-सा फिरा भटकता
बनकर मित्र हवाओं का
कभी गर्म लू बनीं जेठ की
कभी श्रावनी पुरवाई
फूल देखते रहे ठगे-से
ढंग विचित्र हवाओं का
परिक्रमा वेदी की करते
हल्दी लगे पाँव काँपे
जल भर आया कहीँ दॄगोँ में
धुँआ पवित्र हवाओं का
कभी प्यार से माथा चूमा
कभी रूठ कर दूर हटीं
भोला बादल समझ न पाया
त्रिया–चरित्र हवाओं का