झुके फाइलों पर अब, घुँघराले केश 
बिसरे सन्देश, याद केवल आदेश। 
भोर ही निकलते हम
काँधे पर सूर्य लिए 
दफ्तर से घर तक हम ढोते हैं शाम 
अँधियारी गलियों में 
दरवाजे पर अँकित 
पढ़ा नहीं जाता फिर अपना ही नाम 
मन नहीं भटकता अब परियों के देश 
बिसरे सन्देश, याद केवल आदेश। 
तारे अब लगते हैं 
चावल के दानों से 
अनचाहे आस-पास बढ़ रहा है उधार 
पहली तिथि, पन्द्रह दिन 
पहले आ जाये तो 
पन्द्रह दिन आयु घटाने को तैयार 
फबता है साबुन से उजलाया वेश 
बिसरे सन्देश, याद केवल आदेश। 
इन्द्रधनुष को देखे 
कितने ही बरस हुए 
अर्थ नहीं रखता कुछ प्रात का समीर 
जाने कितने पीछे
छूट गया वँशीवट 
खो गया कुहासे में यमुना का तीर 
हम न किसी राधा के द्वरिका-नरेश
बिसरे सन्देश, याद केवल आदेश।