Last modified on 24 फ़रवरी 2018, at 21:05

देखा है मैंने / उषारानी राव

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 24 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषारानी राव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

श्वेत,शुभ्र बादलों का
समूह
अनेक आकृतियाँ
बनाता है
विलीन
हो जाता है
देखा है मैंने
शिल्पी को
जो
अहंकार शिला की
परत-दर -परत
उतार देता है
नई आकृति अभिन्न
हो जाती है
देखा है मैंने
गगनचुंबी
देवदारू को
जड़शक्ति के आकर्षण
को पराभूत कर
अर्थातीत
आनंद को पाता है
देखा है मैंने
'अस्ति' का
उद्धभासित होना
सांकृत्यायन के लिए
हिमालय
औ संस्कृत के लिए
कालिदास का
शक्ति-स्त्रोत होना
देखा है मैंने
हिमखण्डों को
अखंड
जो पिघलते नहीं,
ऐसे हिम हैं
हम
स्याह पड़ा हिमालय
बाहर नही
भीतर है
देखा है मैंने