एक कोमल लड़की / प्रज्ञा रावत
एक कोमल लड़की
जीवन की एक बेहद
ज़रूरी कविता लिख रही है
लड़की से माँ बनती वो
संसार के ख़ूबसूरत
दृश्य को जन्म दे रही है।
उससे हौले-हौले बतियाओ
सहलाओ उसका मन अपने
मद्धिम संगीत से
एक लड़का बाहर से बिखरा-बिखरा
समेटना चाह रहा है ख़ुद को
नए-नए रंगों में
सबसे कहो थोड़ा सब्र करें
जीवन के जिस चक्रव्यूह में
फँसे सब
भागते-हाँफते
जिसे पाने के लिए हो रहे हैं
इतने बेहाल
वो ख़ूबसूरती यहाँ
आकार ले रही है
उन्हें अपने उम्र के गाने
गाने दो
उनसे इस समय किसी और
कविता की उम्मीद
करना बेमानी होगा।
चुपचाप बहती नदी
बरसों से कल-कल
बहते-बहते थक चुकी नदी
पहाड़ की गोद में
एक दिन प्रेम भरी नींद
सोना चाहती है
कोई जाओ
कहो पहाड़ से कि
नदी ज़रा शर्मीली है
यूँ ही चुपचाप बहती रहेगी
जंगलों में बीचोंबीच
मन्द-मन्द तड़कती
अन्दर ही अन्दर।