भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सारे खेलों में सबसे अच्छा खेल / प्रज्ञा रावत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:25, 27 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रज्ञा रावत |अनुवादक=जो नदी होती...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया के सारे खेलों में सबसे अच्छा
खेल घर-घर ही तो है
जिसमें हार-जीत और हाँ-ना से
ज़्यादा जीवन जीने का जश्न है

सारी लड़ाइयों, अच्छाइयों, बुराइयों
के बीच कुछ सबसे ज़्यादा बिखरा है
तो घर ही है

आपाधापी और भागदौड़ से भरे
घर की भी अपनी
शान्ति और तरलता होती है
जहाँ रिश्तों के बीच पानी भरा रहे

घर में निर्जीव लगते से बर्तन
जब बातें करने लगते हैं तो
स्वाद का संगीत उतर आता है
देह से आत्मा तक
घर-माटी की देह ही नहीं नश्वर
अजर-अमर आवरण का गेह भी है।