रोटियाँ / अनुपम सिंह
उम्र के सातवें साल में
गोल रोटियाँ नहीं बेल पाती थीं हम
दादी की तरह हाथ से ही
रोटियाँ पलटने का हुनर नहीं था हममें
रोटी बेलते समय
ख़ाली तवा जलता रहता
हम इतनी सधी हुई नहीं थीं
कि समय का ठीक से संयोजन कर सकें
जब बेलने सेकने और ख़ाली रह जाने का
हिसाब नहीं लगा पाती थीं हम
तब हमारी अँगुलियाँ
रगड़ दी गईं
खाली जलते तवे पर
कि हम जल्दी-जल्दी रोटियाँ बेल सकें
कि झटापट रोटियाँ उलट सके तवे पर
चिमटे के इन्तज़ार में बैठी न रहें
डरती न रह जाएँ अँगुलियाँ जलने से
कि हम दादियों जैसी हुनरमन्द हो जाएँ
चौके पर मेहमान को
पहुँचती रहें बिना जले रोटियाँ
सच ! हमने सीख लिया है
ख़ूब अच्छी तरह गोल रोटियाँ बनाना
रोटियों के साथ ही सीझ गई
बचपन कि इच्छाएँ
परोस दिया गर्म रोटियों के साथ
थालियों में।