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क्या होगा / रंजन कुमार झा

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तुम संग एकाकार हुआ तो क्या होगा

सुमुखि! तुम्हारे माथे का सिंदूर बनूँ
इन कजरारे नैनों का मैं नूर बनूँ
चूड़ी, कंगना ,बिंदिया सब आभूषण के
पहनावे का मैं प्रेमिल दस्तूर बनूँ
यदि ऐसा श्रृंगार हुआ तो क्या होगा

प्रिये! तुम्हारे अधरों पर मुस्कान सजे
दोनों हृद में प्रेम भरा मृदु तान सजे
मिले तुम्हारे मन से मेरे मन का स्वर
दो कंठों में एक प्रेम का गान सजे
यदि ऐसा अभिसार हुआ तो क्या होगा

जीवन के बोझिल प्रश्नों के हल पाकर
तुम्हें साधकर मधुरिम जीवन फल पाकर
जग की चिंता किये बिना हम एक रहें
एक-दूसरे का हर पल सम्बल पाकर
सपना यह साकार हुआ तो क्या होगा