भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इकतारा / मिरास्लाव होलुब / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 11 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिरास्लाव होलुब |अनुवादक=अनिल जन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ईश्वर बजा रहा है अपना इकतारा,
न साज उसे चाहिए, न गवैये, न गीत।
ख़ामोश है हमारा ब्रह्माण्ड यह सारा,
उड़ रहा है चारों तरफ़ अबूझ संगीत।

ईश्वर नहीं हूँ मैं, हूँ उसका इकतारा,
बज रहा हूँ क्यों, यह भी जानता नहीं।
इस विशाल दुनिया में नहीं है कोई सहारा,
कोई मदद करेगा, मन यह मानता नहीं।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय