भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्तर्दृष्टि / मिरास्लाव होलुब / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 11 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिरास्लाव होलुब |अनुवादक=अनिल जन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबने बाँध रखी है आँख पर पट्टी,
यह फ़ैशन नया नहीं, बहुत पुराना है।
ग़ुलामी हमारी यह करवाती है हमसे,
मन में बैठा डर ही इसका बहाना है।

आँख पर से हमें सिर्फ़ पट्टी हटानी है,
चमकदार रोशनी में नज़रों को लाना है।
रोशनी लाएगी अपने साथ आज़ादी,
हमें, बस, उसे अपने दिल में बसाना है।

शायद नीम अन्धेरा ही हमें ज़्यादा भाता है,
सफ़ेद छायाएँ देखना ही पसन्द हमें आता है।
आँसुओं में डूबा संसार जादू यह दिखाता है,
ताक़तवर और ज़्यादा ताक़तवर हो जाता है।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय