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अन्तर्दृष्टि / मिरास्लाव होलुब / अनिल जनविजय

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सबने बाँध रखी है आँख पर पट्टी,
यह फ़ैशन नया नहीं, बहुत पुराना है।
ग़ुलामी हमारी यह करवाती है हमसे,
मन में बैठा डर ही इसका बहाना है।

आँख पर से हमें सिर्फ़ पट्टी हटानी है,
चमकदार रोशनी में नज़रों को लाना है।
रोशनी लाएगी अपने साथ आज़ादी,
हमें, बस, उसे अपने दिल में बसाना है।

शायद नीम अन्धेरा ही हमें ज़्यादा भाता है,
सफ़ेद छायाएँ देखना ही पसन्द हमें आता है।
आँसुओं में डूबा संसार जादू यह दिखाता है,
ताक़तवर और ज़्यादा ताक़तवर हो जाता है।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय