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अँधेरों से निकलना चाहते हैं / रंजना वर्मा

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अँधेरों से निकलना चाहते हैं
सदा बन दीप जलना चाहते हैं

रपट जाते कदम हैं रास्ते पर
फिसल कर फिर सँभलना चाहते हैं

निगाहों ने तुम्हे ले कर जो देखे
यनहीँ ख्वाबों में ढलना चाहते हैं

अंधेरे जब घिरे हर ओर हों तब
शमा बन कर पिघलना चाहते हैं

हवा देने लगी है थपकियाँ अब
कली से फूल बनना चाहते हैं

हमें समझो न तुम अपना भले ही
तुम्हारे साथ रहना चाहते हैं
 
मुसीबत तो कभी भी घेर लेती
समय के साथ चलना चाहते हैं