Last modified on 13 मार्च 2018, at 18:02

तू अगर हमसफ़र नहीं होता / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तू अगर हमसफ़र नहीं होता
जिंदगी में सबर नहीं होता

रूबरू ग़र न खुदाई होती
तो परस्तिश का डर नहीं होता

धूप सूरज की जला ही देती
ग़र जहां में शज़र नहीं होता

अश्क़ आँखों मे जो नहीं होते
तो किसी का गुज़र नहीं होता

जब तशद्दुद की आँधियाँ उठतीं
कोई भी बाख़बर नहीं होता

आशियाने की है ख्वाहिश सबको
पर सभी का तो घर नहीं होता

वक़्त की आहटें जो सुन पाते
आज टूटा क़हर नहीं होता

गैर ग़र करता बेवफ़ाई तो
दिल पे इतना असर नहीं होता

जो न इस कदर टूट जाता दिल
यों कलम बाअसर नहीं होता