भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दे रही सबको हवा पैग़ाम है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:13, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रंग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दे रही सबको हवा पैग़ाम है
जिन्दगानी में नहीं आराम है

जो सताते ही रहे हैं और को
पा रहे अब उस का ही अंजाम है

सब छुड़ा कर हाथ आगे बढ़ गये
क्या पता अब दूर कितना गाम है

प्यार ही जब रूह की है खासियत
किसलिये फिर इश्क़ ये बदनाम है

हो गया राहे वफ़ा में जो फ़ना
बेवफ़ाई का उसे इल्ज़ाम है

हम खुशी को ढूंढते ही रह गये
ढल चली लो ज़िन्दगी की शाम है

दे सकूँ थोड़ा सुकूँ भी मैं अगर
जिंदगी मेरी सभी के नाम है