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हम जमाने से बेबात डरते रहे / रंजना वर्मा

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हम जमाने से बेबात डरते रहे
बेवजह खून जज़्बात करते रहे

हमने शिद्दत से वादे निभाये मगर
वो ही वादों से अपने मुकरते रहे

हम भरोसे को अपने सँभाला किये
कान उनके सदा गैर भरते रहे

दर्द दिल को हमेशा मसलता रहा
अश्क़ आँखों से दिन रात झरते रहे

औरतों की हिफाज़त करे कौन अब
लोग अपने ग़मों से गुजरते रहे

आज हमदर्द कोई किसी का नहीं
लोग जीते रहे लोग मरते रहे

ढूंढ लें कोई गौतम महावीर फिर
पीर औरों की जो रोज हरते रहे