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जिन्दगानी निसार कर बैठे / रंजना वर्मा

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जिन्दगानी निसार कर बैठे
यार हम तुमसे प्यार कर बैठे

पाँव रख के गली में उल्फ़त की
हम खताएँ हज़ार कर बैठे

वस्ल की भी तो कभी बात करो
ये गिला बार-बार कर बैठे

नींद जब गुम हुई निगाहों से
ख़्वाब सब तार-तार कर बैठे

शब बनी तो बरात थी फिर भी
हिज्र में हम शुमार कर बैठे

लूट दिल जिसने की वफ़ा ही नहीं
उसको ही ग़म-गुसार कर बैठे

देख तुमको जुड़ा गयीं आँखें
हम खिज़ा को बहार कर बैठे