दर्द को हँस के भुलाया जाये 
अश्क़ यूँ ही न बहाया जाये 
सो रहा है ये ज़माना जैसे
कोई तूफ़ान उठाया जाये 
लोग खुदगर्ज़ हो गये कितने
फिर हरिक रिश्ता निभाया जाये 
राह सूनी है अँधेरा भी है
एक दीपक तो जलाया जाये 
है खिज़ा बाग़ में आ के ठहरी
फिर कोई फूल खिलाया जाये 
जख़्म खा के न बहायें आँसू
पीर का जश्न मनाया जाये 
जिस गली में हैं भटकतीं खुशियाँ
अब उसे फिर से बसाया जाये