मिली है सज़ा उस जुर्म की जो गुनाह हमने किया नहीं
है अजीब-सा हुआ फैसला जो कहीं भी पहले सुना नहीं
जो ये चाह ले भगवान तो पिघले पहाड़ नदी बने
तू ख़ुदा का खौफ़ न कर मगर क्यूँ है कह रहा कि ख़ुदा नहीं
जरा आ भी जाये जो घूम के दरिया समन्दर ओर से
हर सिम्त बिखरी गवाहियाँ कहे कैसे के वह गया नहीं
वो नज़र में मेरी समा गया कभी पास आ कभी दूर से
उस प्यार की करूँ बात क्या जो किया नहीं जो हुआ नहीं
लो करें हवाएँ ये गुफ़्तगू न चमन में खुशबू न रंग है
हुए गुम बहार के रास्ते कोई गुल यहाँ पर में खिला नहीं
वो जो कह रहा था कि बिन तेरे न तो नींद है न तो ख़्वाब है
सदियाँ हुईं उस शख़्स से मेरा वास्ता भी पड़ा नहीं
था जो दर्द-सा इक जख़्म का वह बना चुभन किसी ख़ार की
है ये बात चैन उड़ा रही कोई ख़ार तो था चुभा नहीं