Last modified on 13 मार्च 2018, at 20:52

मिली है सज़ा उस जुर्म की / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रंग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मिली है सज़ा उस जुर्म की जो गुनाह हमने किया नहीं
है अजीब-सा हुआ फैसला जो कहीं भी पहले सुना नहीं

जो ये चाह ले भगवान तो पिघले पहाड़ नदी बने
तू ख़ुदा का खौफ़ न कर मगर क्यूँ है कह रहा कि ख़ुदा नहीं

जरा आ भी जाये जो घूम के दरिया समन्दर ओर से
हर सिम्त बिखरी गवाहियाँ कहे कैसे के वह गया नहीं

वो नज़र में मेरी समा गया कभी पास आ कभी दूर से
उस प्यार की करूँ बात क्या जो किया नहीं जो हुआ नहीं

लो करें हवाएँ ये गुफ़्तगू न चमन में खुशबू न रंग है
हुए गुम बहार के रास्ते कोई गुल यहाँ पर में खिला नहीं

वो जो कह रहा था कि बिन तेरे न तो नींद है न तो ख़्वाब है
सदियाँ हुईं उस शख़्स से मेरा वास्ता भी पड़ा नहीं

था जो दर्द-सा इक जख़्म का वह बना चुभन किसी ख़ार की
है ये बात चैन उड़ा रही कोई ख़ार तो था चुभा नहीं