हर तरफ़ एक बेरुखी-सी है 
जिंदगी में कोई कमी-सी है 
दर्द बैठे छुपा के सीने में
इसलिये आँख में नमी-सी है 
तीरगी है बहुत घनी लेकिन
रात में अब भी रौशनी-सी है 
तुम नहीं साथ हो मेरे हमदम
याद दिल में मगर छुपी-सी है 
है बहुत साँवली मगर बेटी
माँ की नज़रों में तो परी-सी है 
धो रही पाप है ज़माने के
यूँ तो गंगा भी इक नदी-सी है 
है तेरी याद हिना की खुशबू 
दिल हथेली पर रच गयी-सी है